वर्तमान मंदी के कारण सेवा क्षेत्र काफी प्रभावित हुआ है। उपभोक्ताओं की मांग बढ़ी है परन्तु उत्पादकों को लागत मूल्य से भी कम आय प्राप्त हो रही है। यही कारण है कि विकसित राष्ट्रों से तकनीकी वैज्ञानिकों को छंटनी कर रोजगार से मुक्त कर दिया गया। इसका प्रभाव भारत के उन वैज्ञानिकों पर भी पड़ा जो दूसरे राष्ट्र में रोजगार कर रहे थे। उत्पादकों को उत्पादन क्रिया शिथिल करना पड़ गया। अत्यधिक घाटे के कारण विकसित राष्ट्रों में आत्महत्या करने जैसी घटनाएं होने लगीं। कई वित्तीय संस्थाओं को अमेरिका में अपनी सेवा बंद कर देनी पड़ी। इस प्रकार वर्तमान मंदी का प्रभाव विकसित राष्ट्रों पर काफी प्रतिकूल पड़ा। भारत पर इसका असर कम पड़ा क्योंकि यहाँ का पूँजी बाजार काफी मजबूत अवस्था में अभी भी है। यहाँ के इंजीनियर आज भी बाह्य स्रोती में लगे हुए हैं। खासकर भारत का सूचना प्रौद्योगिकी सेवा क्षेत्र काफी मजबूत है और पूरे विश्व में हमारे इंजीनियरों का स्थान अव्वल है।
हमारी आधारभूत संरचना कमजोर होने के बावजूद वर्तमान मंदी का असर हमारे देश पर कम पड़ा। भारत के बंगलोर जैसे शहर की सूचना प्रौद्योगिकी विश्व के अग्रणी सूचना प्रौद्योगिकी की श्रेणी में आ गयी है। इस प्रकार विश्वव्यापी आर्थिक मंदी विश्व के अधिकांश भागों पर दिखाई पड़ी। भारत एक कृषि प्रधान देश होने के कारण यहाँ आर्थिक मंदी का प्रभाव कम ही देखा गया। फिर भी भारत इससे अछूता नहीं रहा। इस मंदी का असर विकसित देशों पर ज्यादा पढ़ा, क्योंकि वे देश पूँजीवादी अर्थव्यवस्था वाले देश थे। उद्योग-धंधे का वर्चस्व था। भारतीय पूँजी बाजार की मजबूती उच्च मानवीय श्रमिक की दक्षता एवं विशाल श्रम शक्ति के कारण यह आशा व्यक्त की जाती है कि भारत 21वीं शताब्दी में विकसित देशों की श्रेणी में आ सकेगा। अत: यह कहना होगा कि वर्तमान में आर्थिक मंदी का असर अमेरिका, ब्रिटेन, जर्मनी, चीन, जापान एवं अरब देश इत्यादि पर ज्यादा प्रभावी था, परन्तु भारत पर इसका असर कम ही था।