किसी लम्बी परिनालिका में फेरों की संख्या $1000$ है। जब परिनालिका से $4 A$ धारा प्रवाहित होती है, तब इस परिनालिका के प्रत्येक फेरे से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स $4 \times 10^{-3} Wb$ है । इस परिनालिका का स्व$-$प्रेरकत्व है:
एक इलेक्ट्रॉन सरल रेखीय पथ, $XY$ पर गतिमान है। एक कुंडली abcd इस इलेक्ट्रॉन के मार्ग के निकटवर्ती है (आरेख देखिये) तो, इस कुंडली में प्रेरित धारा (यदि कोई हो तो) की दिशा क्या होगी?
$r$ त्रिज्या की एक पतली अर्द्धवृत्ताकार चालक रिंग (वलय) $( PQR )$ किसी क्षैतिज चुम्बकीय क्षेत्र $B$ में गिर रही है। गिरते समय इसका समतल, आरेख में दर्शाये गये अनुसार, ऊध्र्वाधर रहता है। जब गिरती हुई रिंग की चाल $v$ है तो, इसके दो सिरों के बीच विकसित विभवान्तर होगा
तार का एक पाश (लूप) किसी चुम्बकीय क्षेत्र में घूर्णन करता है तो एक परिक्रमण (चक्र) में इसमें प्रेरित ई.एम. एफ. (e.m.f.) की दिशा में परिवर्तन की आवृत्ति होती है:
$10 \Omega$ प्रतिरोध की एक कुंडली में, इससे संबद्व चुम्बकीय फ्लक्स के परिवर्तन से प्रेरित विधुत धारा को समय के फलन के रूप में दिये गए आरेख द्वारा प्रदर्शित किया गया है तो, इस कुंडली से संबद्व फ्लक्स में परिवर्तन का मान वेबर में है:
$400 \Omega$ प्रतिरोध की एक कुंडली को एक चुम्बीय क्षेत्र में रखा गया है। यदि कुंडली से संबद्ध चुम्बकीय फ्लक्स $\phi( wb )$ समय $t$ ( सेकंड) के साथ निम्न प्रकार परिवर्तित होता है, $\phi=50 t ^2+4$ तो कुण्डली में प्रवाहित धारा ( जब $t=2$ सेकंड) होगी:
एक चालक वृताकार पाश ( लूप) को किसी एकसमान चुम्बकीय क्षेत्र में रखा गया है। चुम्बकीय क्षेत्र की तीव्रता $B=.025 T$ है और इसका तल पाश के लम्बवत् है। पाश की त्रिज्या को $1 mm s ^{-1}$ की स्थिर दर से सिकुड़ने दिया जाता है। पाश की त्रिज्या 2 सेमी होने पर उसमें प्रेरिज विद्युत वाहक बल (e.m.f.) है
एक आयताकार, एक वर्गाकार, एक वृत्तीय और एक दीर्घवृत्तीय फन्द जो सभी $x - y$ तल में हैं, एक अचर चुम्बकीय क्षेत्र से स्थिर वेग $\overrightarrow{ V }= v \hat{ i }$ से बाहर निकल रहे हैं। चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा ऋणात्मक $z$ अक्ष की दिशा में है। क्षेत्र से बाहर निकलने के प्रक्रम में इन फन्दों में प्रेरित वि.वा.ब (emf) स्थिरमानी नहीं रहेगा :-
एक चालक वृत्तीय फंद को $0.04 T$ के अचर चुम्बकीय क्षेत्र में इस तरह रखा है कि फंद का तल चुम्बकीय क्षेत्र की दिशा से लम्ब दिशा में है। फन्द् की त्रिज्या $2 mm / s$. की दर से घटने लगती है। जब फन्द की त्रिज्या $2 cm$ होगी तो इसमें प्रेरित वि.वा.ब. $( emf )$ का मान होगा:-
एक लम्बे बहुकुंडलक(सोलिनाइड) में 500 फेरें हैं। जब इसमें 2 ऐम्पीयर की धारा प्रवाहित की जाती है, तो हर फेरे से सम्बन्धित चुम्बकीय फ्लक्स $4 \times 10^{-3} Wb$ होती है। सोलिनाइड का स्वप्रेरकत्व होगा:
दो कुण्डलियों के स्वप्रेरण $2 mH$ तथा $8 mH$ हैं। दोनों को इतना नजदीक रखा गया कि पहली कुण्डली का चुम्बकीय फ्लक्स दूसरी से भी लिंक हो सके। तो इनके बीच अन्तः प्रेरण है :
एक परिपथ जिसका प्रतिरोध $R$ है उसमें लगने वाला चुम्बकीय फ्लक्स $\Delta \phi, \Delta t$ समय में बदल जाता है तो परिपथ में बनने वाला कुल आवेश $Q , \Delta t$ समय में है:
दो कुण्डलियों का अन्तः प्रेरण $0.005 H$ है। पहली कुण्डली में धारा $I = I _0 \sin \omega t$ से परिवर्तित होती है जहां $I _0=10 A$ तथा $\omega=100 \pi$ रेडियन/सेकंड तो उच्चतम वि. वा.ब. :
एक आयताकार कुण्डली का क्षेत्रफल 25 सेमी $^2$, प्रतिरोध $100 \Omega$ तथा फेरों की संख्या 20 है। यदि चुम्बकीय क्षेत्र कागज के तल के लम्बवत् हो तथा 1000 टेसला/सेकण्ड की दर से बदलता हो तो धारा का मान है
एक कुण्डली जिसमें 50 फेरे हैं एक चुम्बकीय क्षेत्र $2 \times$ $10^{-2} T$ के लम्बवत् रखी जाती है। कुण्डली का क्षेत्रफल 100 सेमी $^2$ है। इसमे उत्पन्न प्रेरक वि.वा.ब. $0.1 V$ है। कुण्डली को 1 सेकण्ड में चुम्बकीय क्षेत्र से हटा दिया जाता है तो $t$ का मान है
किसी स्त्रोत जिसका emf, $V=10 \sin 340 t$ है, से श्रेणी में $20 mH$ का प्रेरक, $50 \mu F$ का संधारित्र तथा $40 \Omega$ का प्रतिरोधक संयोजित है। इस प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में शक्ति क्षय है:
एक श्रेणी $R-C$ परिपथ किसी प्रत्यावर्ती वोल्टता के स्त्रोत से जुड़ा है। दो स्तिथियों $(a)$ तथा $(b)$ पर विचार कीजिए $(a)$ जब संधारित्र वायु भरा है। $(b)$ जब, संधारित्र माइका भरा है। इस परिपथ में प्रतिरोधक से प्रवाहित विद्युत धारा $i$ है तथा संधारित्र के सिरों के बीच विभवान्तर $V$ है तो
एक ट्रांसफॉर्मर की दक्षता $90 \%$ है तथा यह $200 V$ व $3$ किलोवाट की पावर सप्लाई पर काम कर रहा है। यदि द्वितीयक कुण्डली से $6$ ऐम्पियर की धारा प्रवाहित हो रही है तो, द्वितीयक कुण्डली के सिरों के बीच विभवान्तर तथा प्राथमिक कुण्डली में विद्युत धारा का मान क्रमशः होगा
एक कुंडली का स्व-प्रेरकत्व $L$ है। यह श्रेणी क्रम मे एक विद्युतबल्ब $B$ तथा एक ए.सी. (A.C.) स्रोत से जुड़ी है। इस बल्ब के प्रकाश की दीप्ति (तीव्रता) कम हो जायेगी, जब
किसी परिपथ में प्रत्यावर्ती विद्युत धारा तथा वोल्टता के तात्क्षणिक मानों को क्रमशं: निम्न प्रकार निरुपित किया जाता है:
$
i=\frac{1}{\sqrt{2}} \sin (100 \pi t) \text { एम्पियर }
$ तथा $e=\frac{1}{\sqrt{2}} \sin (100 \pi t+\pi / 3)$ वोल्ट
तो, इस परिपथ में क्षयित औसत शक्ति वॉट में होगी।
एक विद्युत परिपथ में $R, L, C$ तथा एक ए. सी. वोल्टता स्त्रोत सभी श्रेणी क्रम में जुड़े हैं। परिपथ में से $L$ को हटा देने से वोल्टता तथा विद्युत धारा के बीच कलान्तर $\pi / 3$ हो जाता है, यदि इसके बजाय $C$ को परिपथ से हटा दिया जाये तो, यह कलान्तर फिर भी $\pi / 3$ रहता है। परिपथ का शक्ति गुणांक है :
किसी कुण्डली का प्रतिरोध $30$ ओम है तथा $50$ हर्ट्ज आवृत्ति पर प्रेरकीय प्रतिघात $20$ ओम है। यदि कुण्डली के दोनों सिरों के बीच $200$ वोल्ट, $100$ हर्ट्ज का प्रत्यावर्ती धारा का स्रोत जोड़ा जाता है, तो धारा का मान होगा:
किसी $ac$ परिपथ में एक प्रत्यावर्ती वोल्टता, $e =200 \sqrt{2}$ $\sin 100 t$ वोल्ट, को $1 \mu F$ धारिता के एक संधारित्र से जोड़ा गया है। इस परिपथ में विद्युत धारा का वर्ग-माध्य मूल मान होगा:
एक $ac$ वोल्टता को श्रेणीक्रम में जुड़े एक प्रतिरोधक $R$ और प्रेरक $L$ पर अनुप्रयुक्त किया गया है। यदि $R$ और प्रेरकीय प्रतिघात में प्रत्येक का मान $3 \Omega$, हो तो, परिपथ में अनुप्रयुक्त वोल्टता और विद्युत धारा के बीच कलान्तर होगा:
$C$ धारिता के एक संधारित्र को $V_1$ विभवान्तर तक आवेशित किया गया है। फिर इसकी प्लेटों को एक $L$ प्रेरकत्व के एक आदर्श प्रेरक से जोड़ दिया गया है। जब संधारित्र के सिरों के बीच विभवान्तर कम होकर $V_2$ हो जाय तो प्रेरक से बहने वाली धारा होगी?
एक ट्रान्सफॉर्मर को $220 V$ का निवेश दिया गया है। निर्गत परिपथ में $440$ वोल्ट पर $2.0 A$ की धारा प्रवाहित होती है। यदि ट्रांन्सफॉमर की दक्षता $80 \%$ हो तो ट्रान्सफार्मर की प्राथमिक कुंडली द्वारा ली गई विद्युतधारा है
एक a.c के क्षणिक वि.वा.ब. (e.m.f.)e और धारा $i$ के क्रमानुसार मान निम्न प्रकार व्यक्त किए जा सकते हैं:
$e = E _{ o } \sin \omega t$
$i = I _0 \sin (\omega t -\phi)$
a.c. की एक साइकल(आवर्त) में परिपथ में मध्यमान शक्ति होगी :
एक ट्रांसफार्मर के प्राथमिक और द्वितीयक कुण्डलियों में फेरों की संख्याएँ क्रमानुसार 50 और 1500 हैं। प्राथमिक कुण्डली से सम्बन्धित चुम्बकीय फ्लक्स $\phi=\phi_0+4 t$, द्वारा व्यक्त होती है जबकि $\phi$ वेबर में है, समय $t$ सेकेण्ड में है और $\phi_0$ एक नियतांक है। द्वितीय कुण्डली से प्राप्त वोल्टता होगी-
एक श्रेणीबद्ध $\text{LCR}$ परिपथ में $C =10 \mu F$ एवं $\omega=1000$ सेकेण्ड ${ }^{-1}$ हैं। परिपथ में महत्तम धारा के लिये प्रेरकत्व $L$ का मान कितना होना चाहिये?
$100 W$ और $110 V$ के एक बल्ब को $220 V$ की सप्लाई से प्रदीप्त करने के लिए एक ट्रांसफार्मर का प्रयोग किया गया है। यदि सप्लाई का धारा मान $0.5$ ऐम्पियर हो तो ट्रांसफार्मर की दक्षता होगी, लगभग
एक परिपथ में $X _{ L }=31 \Omega, R =8 \Omega, X _{ C }=25 \Omega$ श्रेणी क्रम में लगाये गये हैं। इन्हें $110 V$ a.c. के साथ जोड़ा गया है। शक्ति-घटक होगा :
दिये गये परिपथ में प्रेरण $L$ तथा संधारित्र $C$ के साथ $A _1$ तथा $A _2$ दो अमीटर जोड़े गये हैं। यदि कुंजी $K$ दबा दी जाए तो तुरन्त $A _1$ तथा $A _2$ का पाठ्यांक होगा:
एक स्टेप अप ट्रांसफार्मर $230 V$ पर काम करता है तथा धारा का मान $2 A$ है। प्राथमिक तथा द्वितीयक में फेरों की संख्या का अनुपात $1: 25$ है तो प्राथमिक में धारा का मान है
एक ट्रांसफार्मर की प्राथमिक कुण्डली में 500 फेरे हैं तथा द्वितीयक कुण्डली में 5000 फेरे हैं। प्राथमिक कुण्डली को $20 V , 50 Hz A . C$. से जोड़ा जाता है। द्वितीयक से कितना निर्गत मिलेगा?
एक प्रयोग में एक $\text{L-C-R}$ परिपथ को $200 V$ के साथ जोड़ा गया। सर्किट में $X _{ L }=50 \Omega, X _{ C }=50 \Omega$ तथा $R$ $=10 \Omega$ है तो प्रतिबाधा होगी
एक धारा प्रवाहित कुण्डली जिसकी त्रिज्या 30 सेमी तथा प्रतिरोध $\pi^2 \Omega$ है को एक चुम्बकीय क्षेत्र $B =10^{-2} T$ वाले क्षेत्र में चुम्बकीय क्षेत्र के लम्बवत् घुमाया जातो है। यदि घुमाने की दर $200 rpm$ हो तो उत्पन्न प्रत्यावर्ती धारा का अधिकतम मान होगा:
$25 \times 10^4$ वाट/मी ${ }^2$ ऊर्जा फ्लक्स का प्रकाश, किसी पूर्णतः परावर्तक पृष्ठ $($ सतह $)$ पर लम्बवत् आपतित होता है। यदि इस पृष्ठ का क्षेत्रफल 15 सेमी $^2$ हो तो, पृष्ठ पर आरोपित औसत बल होगा
निर्वात में किसी विद्युत चुम्बकीय तरंग से संबद्ध वैद्युत क्षेत्र को $\vec{E}=\hat{i} 40 \cos \left(k z-6 \times 10^8 t\right)$, द्वारा व्यक्त किया जाता है। जहाँ $E, z$ तथा $t$ क्रमशः वोल्ट / मीटर, मीटर तथा सेकण्ड $(s)$ में है तो, तरंग सदिश $(k)$ का मान है :
मुक्त आकाश में किसी विद्युत चुम्बकीय तरंग का विद्युत क्षेत्र
$\vec{E}=10 \cos \left(10^7 t+k x\right) \hat{j} V / m$ से निरूपित (प्रकट)
किया जाता है। जहाँ $t$ सेकेण्ड में और $x$ मीटर में है। इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि
(1) तरंगदैर्ध्य $\lambda=188.4 m$
(2) तरंग संख्या $k=0.33 rad / m$
(3) तरंग-आयाम $=10 V / m$
(4) तरंग $+x$ दिशा की ओर गमन कर रही है।
निम्नलिखित प्रकथनों के युग्मों में से कौन सा ठीक है?
एक माध्यम में विद्युत चुम्बकीय तरंग का वैद्युत क्षेत्री भाग निम्न प्रकार सूचित है $E _{ x }=0$;
$ E _{ y }=2.5 \frac{ N }{ C } \cos \left[\left(2 \pi \times 10^6 \frac{ rad }{ m }\right) t -\left(\pi \times 10^{-2} \frac{ rad }{ s }\right) x \right]$
$E _{ z }=0 $,यह तरंग
यदि $\overrightarrow{ E }$ तथा $\overrightarrow{ B }$ किसी वैद्युत चुम्बकीय तरंग के लिए विद्युत तथा चुम्बकीय क्षेत्र बताती हो तो तरंग के चलने की दिशा होगी :
प्रिज्म के किसी अपवर्तक पृप्ठ पर किसी प्रकाश किरण के लिए आपतन कोण का मान $45^{\circ}$ है। प्रिज्म कोण का मान $60^{\circ}$ है। यदि यड किरण प्रिज्म से न्यूनतम विचतित होती है, तो न्यूनतम विचलन कोण तथा प्रिज्म के प्रदार्थ का अपवर्त्तनांक क्रमश: हैः
किसी खगोलीय दूरबीन के अभिदृश्यक और नेत्रिका की फोक्स दूरियां कमश: $40$ से.मी. और $4$ से.मी. हैं। अभिदृश्यक से $200$ से.मी. दूर स्थित किसी बिम्ब को देखने के लिए दोनों लेंसों के बीच की दूरी होनी चाडिए:
सामान्य समायोजन की स्थिति में, किसी खगोलीय दूरदर्शक के अभिदश्यक लेंस के भीतरी भाग पर $L$ लम्बार्ई के एक काली सरता रेखा खिची गर्ई है। नेत्रिका इस सरल रेखा का वास्तविक प्रतिबिम्ब बनाती है। प्रतिबिम्ब की लम्बाई $l$ है तो दूरदर्शक का आवर्थन है :
एक प्रकाश किरणपूंज, लाल, हरे तथा नीले रंगों से बना है। यड किरणपुंज किसी समकोणी प्रिज्म पर आपतित होता है $($ आरेख देखिये $)$ प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक, लाल, हरे, व नीले रंग के लिये क्रमश: $1.39$, $1.44$ तथा $1.47$ है, तो यह प्रिज्म:
किसी प्रिज्म का कोण $A$ है। इस प्रिन्म के एक अपवर्तक फलक को रजतित कर परावर्तक बना दिया गया है, इसके पृष्ठ पर, $2 A$ कोण पर आपतित प्रकाश की किरणें, रजतित फलक से परावर्तन के पश्चात् अपने मार्ग पर वापस आ जाती हैं। प्रिज्म के पदार्थ का अपवर्तनांक $\mu$ होगा
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